दक्षिण भारत की सभ्यता में क्या है अगस्त्य ऋषि का योगदान ?
विंध्य पर्वत श्रृंखला आज तक अगस्त्य ऋषि के लौटने की प्रतीक्षा कर रही है। लेकिन यह नहीं होगा, क्योंकि यदि वे लौटे तो विंध्य पर्वत फिर से गर्व से अपना सिर ऊंचा करेंगे और सूर्यकिरणों को रोकेंगे। रोचक बात यह है कि अगस्त्य ऋषि के दक्षिण जाने का एक और कारण है। कहते हैं कि एक बार शिव वेद और तंत्र का ज्ञान बांट रहे थे। इसलिए सभी ऋषि उन्हें सुनने के लिए कैलाश पर्वत पर एकत्रित हुए। इससे पृथ्वी एक ओर झुक गई। तब शिव ने अगस्त्य से दक्षिण जाकर पृथ्वी का संतुलन बनाए रखने की विनती की। यह इसलिए कि अगस्त्य का आध्यात्मिक भार अन्य सभी ऋषियों के भार के बराबर था।अगस्त्य के दो पिता (वैदिक देवता मित्र और वरुण) तथा एक माता उर्वशी नामक अप्सरा थीं। अगस्त्य विवाह कर स्वयं पिता कभी नहीं बनना चाहते थे। फिर उन्होंने एक भयंकर स्वप्न देखा - एक अथाह खाई के ऊपर लटके हुए अगस्त्य के पितृ चीखकर उन्हें बता रहे थे कि जब तक अगस्त्य विवाह कर स्वयं पिता नहीं बनते, तब तक उनके पितरों का पुनर्जन्म नहीं होगा और वे पितृलोक में ही फंसे रहेंगे। news published by - infowithngc
इसलिए विंध्य पर्वत पार करने पर अगस्त्य ने एक राजा की बेटी से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। विदर्भ क्षेत्र के यह राजा निःसंतान थे। उन्होंने अगस्त्य से कहा, 'मैं आपको वह पुत्री सौंप रहा हूं जो अभी जन्मी नहीं है।' अगस्त्य ने उन्हें उत्तर दिया, 'आपको शीघ्र ही यह पुत्री प्राप्त होगी और आप उसे मुझे सौंपेंगे।' फिर अगस्त्य ने जादू से जंगल के पशु-पक्षियोंके सबसे सुंदर भागों से एक महिला निर्मित की। चूंकि यह महिला प्राणियों की सबसे सुंदर मुद्राओं के लोप से बनाई गई थी, इसलिए उसे लोपामुद्रा कहा गया। उसे राजा को सौंपा गया, जिन्होंने उसका विवाह अगस्त्य से करवाया। लोपामुद्रा ने अपने छोटे कद के और हृष्ट- पृष्ट पति के साथ सभी जगह जाकर अपना कर्तव्य निभाया। लेकिन उसने उनसे विनती भी की कि वे उससे राजकुमारी के लिए योग्य व्यवहार करें। उसने उनसे कहा कि वे समृद्ध घर में आरामदेह पलंग पर सुंदर कपड़े पहनकर मेरे पास आएं। लेकिन अगस्त्य एक संन्यासी थे और इसलिए उनके पास न सुंदर कपड़े थे, न आरामदेह पलंग था और न ही समृद्ध घर था। फलस्वरूप वे भेंट में ये वस्तुएं पाने के लिए अन्य राजाओं के पास गए, ताकि वे अपनी पत्नी को प्रसन्न कर सकें।
दक्षिणी यात्रा पर अगस्त्य अपने साथ गंगाजल का एक कमंडल ले गए थे। जब उन्होंने दक्षिण भारत जाकर इस कमंडल को धरती पर रखा, तब गणेश ने कौवे या फिर मूषक का रूप लेकर कमंडल को झुका दिया। कमंडल से जल बहने लगा और कावेरी नदी का निर्माण हुआ। अपने आप को हिमालय की याद दिलाने के लिए अगस्त्य उत्तर से अपने साथ दो पहाड़ लेगए थे। हिडिम्ब नामक राक्षस इन पहाड़ों को कावड़ में बांधकर अगस्त्य के साथ गया। दक्षिण पहुंचते ही एक पहाड़ बहुत भारी हो गया और हिडिम्ब उसे उठा नहीं पाया। तब अगस्त्य ने पाया कि एक बालक उस पर बैठा था। उस बालक ने कहा, 'ये पहाड़ मुझे उत्तर में स्थित मेरे घर की याद दिलाते हैं।' अगस्त्य समझ गए कि यह शिव के पुत्र कार्तिकेय थे, जो शिव से गुस्सा होकर घर छोड़ आए थे। अगस्त्य ने हिडिम्ब से वह पहाड़ उस जगह पर नीचे रखने के लिए कहा, जहां कार्तिकेय चाहते थे। यह पहाड़ अब तमिलनाडु का पलनी पहाड़ है और कार्तिकेय अर्थात दक्षिण भारत के मुरुगन का तीर्थस्थल है।
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अगस्त्य और लोपामुद्रा ने ऋग्वेद के कुछ स्तोत्र रचे हैं। कहते हैं कि दोनों ने ललिता सहस्रनाम का प्रचार किया, जिसमें देवी के 1000 नामों का उल्लेख है। अगस्त्य आयुर्वेद के दक्षिणी रूप 'सिद्ध' के पिता के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे भविष्यवाणी और वास्तुकला की रहस्य्मय कलाओं से और तमिल भाषा के निर्माण से भी जुड़े हैं। तमिलनाडु और केरल के बीच एक पहाड़ पर दुर्लभ जड़ी-बूटियां मिलती हैं। इससे हमें याद दिलाया जाता है कि दक्षिण भारत की सभ्यता में अगस्त्य का कितना बड़ा योगदान था।
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